दोस्तों इस कहानी में हम आपको पदछाइ को वश में कर देनेवाली देव-कन्या सिंहिका की कहानी के बारे में बातएंगे | सिंहिका ने अपनी कुंडलिनी को जाग्रत कर ऐसी शक्ति प्राप्त की थी | जिस से वह किसी भी मनुष्य की पदछाइ को वश में करने की शक्ति रखती थी | ये वही सिंहिका थी जिन्होंने समुद्र पार कर रहे, हनुमानजी की पदछाइ पकड़ ली थी
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सिंहका के पास ऐसी शक्ति थी जिससे वे शरीरी से आत्माको निकाल कर, अपने वश में कर लेती थी | जो कोई भी उसकी बातो को मानने से इंकार कर देता था | उसे वह अपने वश में कर लेती थी | सिंहिका एक देवकन्या थी जिसे बचपन में ही उनके माता पिता ने त्याग कर वन में छोड़ दिया था | ऋषि अगत्स्य ने उन्हें शिक्षा दी थी |
Jay Jay Jay Bajrangbali – Sinhika Hanuman Story
जन्म जन्मांतर से मुक्त होने के, और मोक्ष प्राप्त करने के सारे मार्ग अगत्स्य ऋषि ने सिंहिका को बताये थे
अगत्स्य ऋषि ने सिंहिका को बताया की – आध्यात्मिक शक्ति का ज्ञान प्राप्त करने के लिए, मनुष्य शरीर सबसे उत्तम हे मनुष्य शरीर को मुक्ति का द्वार कहा गया हे | मनुष्य की अंदर शक्ति का स्पंदन होता हे मनुष्य के शरीर में सात चक्र होतो हे जिसे योग अभ्यास द्वारा जाग्रत किया जा सकता हे |
अगत्स्य मुनि ने अपने शरीर में सांतो चक्र – जैसे मूलाधार चक्र (कुंडलिनी शक्ति) स्वाधिस्ठान चक्र – मणिपुर चक्र वहाँ से अनाहत चक्र, विशुद्ध चक्र और आग्नेय चक्र को जाग्रत करने का मार्ग सिंहिका को बताया था
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अंत में सहस्रार चक्र जिसका बीज मंत्र ॐ इन शक्ति का दुरूपयोग करने पर मनुष्य दूसरे का विनास करता हे किन्तु अन्तमे उनका भी अंत हो जाता हे यह शक्ति इतनी प्रबल होती हे जैसे गंगा का प्रवाह सिंहिका ने कठोर तपस्या कर 6 चक्रो को जाग्रत कर लिया और उसमे अद्भुत शक्तिया आ गयी अब सिंहिका ने अपना असली रूप दिखाया उन्होंने ऋषि मुनियो पर अपनी शक्ति का गलत प्रयोग करना आरम्भ कर दिया
सिंहिका को अपनी शक्ति पर घमंड आ गया ऋषि मुनिओ की शक्तियों को क्षीण करने लगी और कहने लगी मेरी शक्तियों के सामने अब कोई टिक नहीं सकता |अगस्त्य ऋषि ने सिंहिका की शक्तियों का रहस्य रुद्र अवतार हनुमानजी को बताया था और कहा था की सिंहिका को सातवे चक्र को जगाने से रोकना होगा
तत्पश्चात पवनपुत्र हनुमानजी सिंहिका को ढूढ़ते हुए उस स्थान पर पहुंच गए जहां सिंहिका अपनी शक्तियों को जाग्रत कर रही थी
हनुमानजी ने सिंहिका के यज्ञ कुंड को नष्ट किया तब सिंहिका ने कहा मेरे छाया लोक में बंदी सभी की छाया से में फिर से यह शक्ति प्राप्त करूंगी ऐसा कहकर सिंहिका वहां से ग़ायब हो गयी | हनुमानजी उन्हें ढूढ़ते हुए छाया लोक पहोच गए जहां सिंहिका ने हनुमानजी के पिता केसरी और नाना कुंजर को भी अपने वश में कर लिया था| महाराज केसरी और कुंजर को नगर रक्षक बना लिया था
हनुमानजी को क्यों पिता केसरी से युद्ध करना पडा?
जब हनुमानजी उन्हें ढूढ़ते हुए वहां पोहचे तब हनुमानजी को पिता केसरी और नाना कुंजर से भी युद्ध करना पड़ा था क्योकि वो सिंहिका के वश में थे | पिता और नाना को परास्त करने के उपरांत हनुमानजी ने अपनी छाया को छाया लोक में प्रवेश करवाया
हनुमानजी वहां जा पोहचे जहाँ सिंहिका सारी छाया को नष्ट करने जा रही थी और सिंहिका की शक्तियों पर काबू पा लिया हनुमानजी ने अपने सातो चक्रो को जाग्रत किया जिसे देख सिंहिका आस्चर्य में आ गयी हनुमानजी की शक्तियों में इतना तेज था की सिंहिका के 6 चक्रो से बनाया हुआ छाया लोक को पल भर में ही नष्ट कर दिया | हनुमानजी ने उनकी सारी छाया को मुक्त कर, उन्हें उनके शरीर में दाल दिया
सिंहिका छाया लोक नष्ट हो जाने पर हनुमानजी को नष्ट करने चली थी, सिंहिका को हनुमानजी की शक्तियों का ज्ञान नहीं था सिंहिका ने अपने एक एक चक्र को जाग्रत कर हनुमानजी पर प्रहार किया, किन्तु रुद्र अवतार हनुमान जी की शक्तियों के आगे उनके सारे चक्र विफल हो गए, अन्तमे हनुमानजी की शक्तियों से सिंहिका की शक्तियों का अंत हो गया हनुमानजी सिंहिका को बंदी बनाकर अगत्स्य ऋषि के आश्रम ले गए
हनुमानजी ने अगत्स्य ऋषि से कहा सिंहिका को दंड देना का अधिकार केवल आपको ही हे अगत्स्य मुनि ने गुरु के साथ छल करने पर उसे श्राप दिया की – सिंहिका तुम एक असुर हो जाओगी तथा सागर की तहत में आजीवन व्यतीति करोगी |तुम्हारा पृथ्वी से कोई सम्पर्क नहीं होगा |क्योकि तुम इस प्रथ्वी के लायक ही नहीं हो
अगत्स्य मुनि के श्राप से सिंहिका राक्षशी के रूप में स्थित हो गयी फिर अगत्स्य मुनि ने हनुमानजी को कहा इसे समुद्र में स्थित कर दे हनुमानजी ने अपनी शक्तियों के सहारे सिंहिका को सागर में स्थित कर दिया
सागर में स्थित सिंहिका ने हनुमानजी से क्षमा याचना की और मुक्ति का मार्ग पूछा हनुमानजी ने कहा एक दिन में रामकाज के लिए समुद्र पार जाऊंगा तब तुम्हारा उद्धार होगा और इसी तरह लंका जाते वक्त हनुमानजी ने समुद्र में स्थित सिंहिका राक्षसी का उद्धार किया था