अर्जुन वध | Arjun Vadh mahabharat katha

दोस्तो क्या आप अर्जुन वध के बारेमे जानना चाहते हो ? तो आप बहुत ही अच्छी ब्लॉग पर आये है इस ब्लॉग पर अर्जुन और अर्जुन पुत्र बभ्रुवाहन के जीवन से जुडी हुई जानकारी आपको मिल जाएगी।

अर्जुन अपने पुत्र बभ्रुवाहन के हाथों मारे गए थे और बाद में एक मणि के प्रभाव से पुनर्जीवित हो गए थे | अर्जुन पांच पांडवों में से एक थे। वैसे तो पौराणिक कथाओं में अर्जुन की चार पत्नियों का जिक्र मिलता है। इनमें द्रौपदी, चित्रांगदा, सुभद्रा और उलूपी शामिल हैं। इनमें से उलूपी नागकन्या थीं

महाभारत बभ्रुवाहन और अर्जुन की कहानी

महाभारत की कथा में एक प्रसंग आता है, जब बभ्रुवाहन एक युद्ध में अपने ही पिता अर्जुन का वध कर देते है। अर्जुन ने द्रोपदी और सुभद्रा के अलावा अन्य दो विवाह किए थे। एक थी उलूपी से, उससे पुत्र इरावान पैदा हुआ था, जिसने महाभारत युद्ध में अपनी स्वैचिछक बलि दी थी। दूसरा विवाह किया था, मणिपुर की राजकुमारी चित्रांगदा से। उससे पुत्र बभ्रुवाहन नमक पुत्र हुआ था, कहा  जाता हे जिसने एक युद्ध में स्वयं अपने पिता का वध किया था। 

महाभारत युद्ध में भीष्म पितामह के वध होने पर युधिष्ठिर को बहुत दुख हुआ। तब महर्षि वेदव्यास एवं श्रीकृष्ण ने उन्हें समझाया और धर्मपूर्वक शासन करने के लिए कहा। शोक निवारण के लिए भगवान् श्रीकृष्ण के कहने पर महर्षि वेदव्यास ने युधिष्ठिर से अश्वमेध यज्ञ करने के लिए कहा। तब युधिष्ठिर ने कहा कि इस समय हस्तिनापुर का राजकोष खाली हो चुका है। अश्वमेध यज्ञ करने के लिए बहुत से धन की आवश्यकता होती है, जो उपलब्ध नहीं था  

अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन

युधिष्ठिर की बात सुनकर – महर्षि वेदव्यास ने बताया कि पूर्व काल में राजा मरुत्त ने एक यज्ञ किया था। उस यज्ञ में उन्होंने ब्राह्मणों को बहुत सा सोना दिया था। सोना अधिक मात्रा में होने के कारण ब्राह्मण अपने साथ नहीं ले जा पाए थे । वह सोना आज भी हिमालय पर मौजूद है। उस धन से अश्वमेध यज्ञ किया जा सकता है। महर्षि वेदव्यास  की बात सुन युधिष्ठिर ने ऐसा ही करने का निर्णय लिया। 

महर्षि वेदव्यास के कहने पर पांडव ने हिमालय की और प्रस्थान किया वहां  महर्षि  के बताये अनुसार राजा मरुत्त के धन को प्राप्त कर लिया। फिर धन लेकर पांडव हस्तिनापुर आये 

अश्वमेध यज्ञ आरंभ

पांडवों ने शुभ मुहूर्त देख-कर अश्वमेघ यज्ञ का शुभारंभ किया | अर्जुन को अंग-रक्षक बना कर अश्व को छोड़ दिया। वह अश्व जहां भी जाता, अर्जुन उसके पीछे जाते थे। अनेक राजाओं ने पांडवों की अधीनता स्वीकार कर ली क्योकि अर्जुन से युद्ध करने के लिए कोई तैयार नहीं था । वहीं कुछ राजाओ ने मैत्री-पूर्ण संबंधों के आधार पर पांडवों से संधि भी कर ली । किरात, मलेच्छ एवं यवन आदि देशों के राजाओं ने यज्ञ के घोड़े को रोक ने की चेष्टा की किन्तु अर्जुन ने उनसे युद्ध कर उन्हें पराजित कर उनका राज्य जीत भी लिए । इस तरह विभिन्न देशों के राजाओं के साथ महारथी अर्जुन को युद्ध करना पड़ा। 

अर्जुन पुत्र बभ्रुवाहन की कहानी

फिर अश्वमेघ यज्ञ का घोड़ा घूमते-घूमते मणिपुर पंहुचा | वहां की राजकुमारी चित्रांगदा से अर्जुन को बभ्रुवाहन नामक पुत्र था। बभ्रुवाहन ही उस समय मणिपुर का राजा था। जब बभ्रुवाहन को अपने पिता अर्जुन के आने का समाचार मिला तो उनका स्वागत करने के लिए वह नगर के द्वार पर आया। अपने पुत्र बभ्रुवाहन को देखकर अर्जुन ने कहा कि मैं इस समय यज्ञ के घोड़े की रक्षा करता हुआ, तुम्हारे राज्य में आया हूं। इसलिए तुम मुझसे युद्ध करो। 

जिस समय अर्जुन बभ्रुवाहन से यह बात कह रह था, उसी समय नागकन्या उलूपी भी वहां आ गई। उलूपी भी अर्जुन की पत्नी थी। उलूपी ने भी बभ्रुवाहन को अर्जुन के साथ युद्ध करने के लिए उकसाया। अपने पिता अर्जुन व सौतेली माता उलूपी के कहने पर अर्जुन पुत्र बभ्रुवाहन युद्ध के लिए तैयार हो गया। अर्जुन और पुत्र बभ्रुवाहन में भीषण युद्ध होने लगा। अपने पुत्र का पराक्रम देखकर अर्जुन बहुत प्रसन्न हुए। 

अर्जुन और अर्जुन पुत्र बभ्रुवाहन के बीच युद्ध

बभ्रुवाहन उस समय युवक ही था। अपने बाल स्वभाव के कारण बिना परिणाम पर विचार कर उसने एक तीखा जौसे कामाख्या देवी से प्राप्त था वह बाण अर्जुन पर छोड़ दिया। उस बाण की चोट से अर्जुन बेहोश होकर धरती पर गिर पड़े। बभ्रुवाहन भी उस समय तक बहुत घायल हो चुका था, वह भी बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ा। तभी वहां बभ्रुवाहन की माता चित्रांगदा भी आ गई। अपने पति व पुत्र को घायल अवस्था में धरती पर पड़ा देख उसे बहुत दुख हुआ।

चित्रांगदा ने देखा कि उस समय अर्जुन के शरीर में जीवित होने के कोई लक्षण नहीं दिख रहे थे। अपने पति को मृत अवस्था में देखकर वह फूट-फूट कर रोने लगी। उसी समय बभ्रुवाहन को होश आ गया। जब उसने देखा कि उसने अपने पिता की हत्या कर दी है, तब उसे बहुत ही ज्यादा शोक हुआ । अर्जुन की मृत्यु से दुखी होकर चित्रांगदा और बभ्रुवाहन दोनों ही आमरण उपवास पर बैठ गए।

अर्जुन वध के बाद कैसे जीवित हुई अर्जुन

जब नागकन्या उलूपी ने देखा कि चित्रांगदा और बभ्रुवाहन आमरण उपवास पर बैठ गए हैं, तो उसने संजीवन मणि का स्मरण किया। उस मणि के हाथ में आते ही उलूपी ने बभ्रुवाहन से कहा कि यह मणि अपने पिता अर्जुन की छाती पर रख दो। बभ्रुवाहन ने उलूपी केखने पर ऐसा ही किया। वह मणि छाती पर रखते ही अर्जुन जीवित हो उठे। अर्जुन द्वारा पूछने पर उलूपी ने बताया कि यह मेरी ही मोहिनी माया थी। उलूपी ने बताया कि छल पूर्वक भीष्म का वध करने के कारण वसु (एक प्रकार के देवता) आपको श्राप देना चाहते थे।

जब यह बात मुझे पता चली तो मैंने यह बात अपने पिता को बताई। उन्होंने वसुओं के पास जाकर, ऐसा न करने की प्रार्थना की। तब वसुओं ने प्रसन्न होकर कहा कि मणिपुर का राजा बभ्रुवाहन अर्जुन का पुत्र है, यदि वह बाणों से अपने पिता का वध कर देगा, तो अर्जुन को अपने पाप से छुटकारा मिल जाएगा। आपको वसुओं के श्राप से बचाने के लिए ही मैंने यह मोहिनी माया दिखलाई थी। इस प्रकार पूरी बात जान कर अर्जुन, अर्जुनपुत्र बभ्रुवाहन और चित्रांगदा भी प्रसन्न हो गए। अर्जुन ने पुत्र बभ्रुवाहन को अश्वमेध यज्ञ में आने का निमंत्रण दिया और पुन: अपनी यात्रा पर चल दिए।

कैसे हुआ अश्वमेघ यज्ञ सम्पन्न

इस प्रकार अर्जुन अन्य देशों के राजाओं को पराजित करते हुए पुन: हस्तिनापुर लौट आए। अर्जुन के आने की खबर सुनकर युधिष्ठिर एवं श्रीकृष्ण बहुत प्रसन्न हुए। तय समय पर उचित स्थान देखकर यज्ञ के लिए भूमि का चयन किया गया। शुभ मुहूर्त में यज्ञ प्रारंभ किया हुआ। यज्ञ को देखने के लिए दूर-दूर से राजा-महाराजा आए।

पांडवों ने सभी का उचित आदर-सत्कार किया। अर्जुन पुत्र बभ्रुवाहन, चित्रांगदा एवं उलूपी भी उस यज्ञ में शामिल होने आए।यज्ञ संपूर्ण होने पर युधिष्ठिर ने पूरी धरती ब्राह्मणों को ही दान कर दी है। तब महर्षि वेदव्यास ने कहा कि ब्राह्मणों की ओर से यह धरती, मैं पुन: तुम्हे वापस करता हूं। इसके बदले तुम सभी ब्राह्मणों को स्वर्ण दे दो। युधिष्ठिर ने ऐसा ही किया। युधिष्ठिर ने सभी ब्राह्मणों को तीन गुणा सोना दान में दिया। इतना दान पाकर ब्राह्मण भी तृप्त हो गए। ब्राह्मणों ने पांडवों को आशीर्वाद दिया। इस प्रकार अश्वमेध यज्ञ सकुशल संपन्न हो गया।

FAQ For Arjun Vadh mahabharat katha

अर्जुन का वध किसने किया था?

बभ्रुवाहन ने कामाख्या देवी से प्राप्त दिव्य बाण से अर्जन पर प्रहार किया जिससे अर्जुन का सर धड़ से अलग हो गया

अर्जुन को किसने पुनर्जीवित किया था

भगवान् श्रीकृष्ण ने अर्जुन वध के बाद अर्जुन को फिर से जीवित किया

अर्जुन को श्राप किसने श्राप दिया ?

उर्वशी क्रोध में आकर अर्जुन को नपुंसक होने का श्राप दे दिया

अर्जुन सबसे ज्यादा किससे प्यार करता था?

यह कहना मुश्किल है कि अर्जुन किससे सबसे ज्यादा प्यार करते थे। यह एक लोकप्रिय धारणा है कि, वह सुभद्रा को सबसे अधिक प्यार करते थे।

निष्कर्ष
दोस्तों कमेंट के माध्यम से यह बताएं कि “अर्जुन वध” का यह आर्टिकल आपको कैसा लगा | आप सभी से निवेदन हे की अगर आपको हमारी पोस्ट के माध्यम से सही जानकारी मिले तो अपने जीवन में आवशयक बदलाव जरूर करे फिर भी अगर कुछ क्षति दिखे तो हमारे लिए छोड़ दे और हमे कमेंट करके जरूर बताइए ताकि हम आवश्यक बदलाव कर सके | आपका एक शेयर हमें आपके लिए नए आर्टिकल लाने के लिए प्रेरित करता है |

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

0FansLike
0FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles