दोस्तों क्या आप “महादेव का प्रथम अवतार : वीरभद्र” के बारेमे जानना चाहते हे ? क्या आप भगवन शिव के अवतार के बारेमे जानना चाहते हे? तो आप सही आर्टिकल पढ़ रहे हो । आपसे अनुरोध है की कुछ समय दे कर पुरे लेख को अच्छी तरह से पढ़े ताकि आपको पूरी जानकारी मिल सके।
1 | Veerabhadra Avatar of Lord Shiva | महादेव का प्रथम अवतार | वीरभद्र अवतार |
2 | Piplaad Avatar of Lord Shiva | महादेव का द्वितीय अवतार | पिप्पलाद अवतार |
3 | Nandi Avatar of Lord Shiva | महादेव का तृतीय अवतार | नंदी अवतार |
4 | Bhairava Avatar of Lord Shiva | महादेव का चौथा अवतार | भैरव अवतार |
5 | Ashwatthama Avatar of Lord Shiva | महादेव का पाँचवाँ अवतार | अश्वत्थामा अवतार |
6 | Sharabha Avatar of Lord Shiva | महादेव का छठा अवतार | शरभावतार |
7 | Grihapati avatar of Lord Shiva | महादेव का सातवाँ अवतार | गृहपति अवतार |
8 | Durvasa avatar of Lord Shiva | महादेव का आठवाँ अवतार | ऋषि दुर्वासा |
9 | Hanuman Avatar of Lord Shiva | महादेव का नोवाँ अवतार | हनुमान अवतार |
10 | Rishabha Avatar of Lord Shiva | महादेव का दसवाँ अवतार | वृषभ अवतार |
11 | Yatinath Avatar of Lord Shiva | महादेव का ग्यारहवाँ अवतार | यतिनाथ अवतार |
12 | Krishna Darshan Avatar of Lord Shiva | महादेव का बारहवाँ अवतार | कृष्णदर्शन अवतार |
13 | Avadhut Avatar of Lord Shiva | महादेव का तेरहवाँ अवतार | अवधूत अवतार |
14 | Bhikshuvarya Avatar of Lord Shiva | महादेव का चौदहवाँ अवतार | भिक्षुवर्य अवतार |
15 | Sureshwar Avatar of Lord Shiva | महादेव का पंद्रहवाँ अवतार | सुरेश्वर अवतार |
16 | Keerat Avatar of Lord Shiva | महादेव का सोलहवाँ अवतार | किरात अवतार |
17 | Brahmachari avatar of Lord Shiva | महादेव का सत्रहवाँ अवतार | ब्रह्मचारी अवतार |
18 | Sunatnartak avatar of Lord Shiva | महादेव का अठारहवाँ अवतार | सुनटनर्तक अवतार |
19 | Yaksheshwar Avatar of Lord Shiva | महादेव का उन्नीसवाँ अवतार | यक्ष अवतार |
भगवान शिव का वीरभद्र अवतार – वीरभद्र कथा
हिंदू पौराणिक कथाओ में भगवान शिव के १९ अवतार बताये गए हैं|जिनमें महादेव के प्रथम अवतार वीरभद्र बताये गए हैं|
यह कथा हे,दक्ष प्रजापति और उनकी पुत्री सती के बारेमे|प्रजापति दक्ष की कई पुत्रियां थी।परंतु वे एक सर्व-विजयिनी और शक्ति-संपन्न कन्या चाहते हे|दक्ष एक ऐसी पुत्री के लिए तप करने लगे।उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर देवी आद्या प्रकट हुए और कहा ‘मैं तुम्हारे तप से प्रसन्न हूं। मैं स्वय पुत्री रूप में तुम्हारे यहाँ जन्म धारण करूंगी।
सती के जन्म की कहानी
कुछ समय पश्च्यात दक्ष प्रजापति के घर में एक सुन्दर कन्या का जन्म हुआ जो देवी आद्या का रूप थी|जिनका नाम सती रखा गया|समय बीतता गया और सती विवाह योग्य हुई,अब|प्रजापति दक्ष को सती के विवाह के विषय में चिंता हेने लगी|प्रजापति दक्ष ने अपने पिता बह्माजी के पास गए और चिंता का कारण बताया तब ब्रह्माजी ने कहा,’सती आद्या का अवतार हैं।आद्या आदिशक्ति और शिव आदि पुरुष हैं।अतः सती के विवाह के लिए शिव ही योग्य और उचित वर हैं।’
सती शिव विवाह
अपने पिता की बात मानकर प्रजापति दक्ष ने अपनी पुत्री सती का विवाह भगवान शिव के साथ करने का निश्चित किया|विवाह हेने के बाद सती कैलाश में जाकर भगवान शिव के साथ रहने लगीं।
कुछ समय पश्च्यात ब्रह्मा ने धर्म के निरूपण के लिए एक सभा का आयोजन किया|सभी बड़े-बड़े देवता सभा में एकत्र हुऐ थे|भगवान शिव,भगवान विष्णु,इंद्र देव आदि…|प्रजापति दक्ष का आगमन हुआ।दक्ष के आगमन पर सभी देवता उठकर खड़े हो कर|प्रजापति दक्ष को आवकार दिया,परन्तु भगवान शिव खड़े नहीं हुए।प्रजापति दक्ष को लगा शिव मेरे जामाता हे,फिरभी मुजे आवकार नहीं दिया|दक्ष को यह बात अपने अपमान रूप लगी|यह कारण दक्ष के हृदय में भगवान शिव के प्रति बैर और विरोध पैदा हो गया।अब वे बदला लेने के लिए समय और अवसर की प्रतीक्षा करने लगे।
प्रजापति दक्ष ने कनखल में बहुत बडे यज्ञ का आयोजन किया|उन्होंने यज्ञ में सभी देवताओं और मुनियों को आमन्त्रित किया परन्तु अपनी पुत्री सती और भगवान शिव को आमंत्रण नहीं दिया, क्युकी दक्ष के मन में भगवान् शिव के प्रति ईर्ष्या थी|अपने पिता को इतना बड़ा यज्ञ करते देख माता सती को यज्ञ में सम्मिलित होने की इच्छा हुए |
सती का अपमान किया उनके ही पिता दक्ष प्रजापति ने
जब सती ने शिवजी से कनखल जाने की अनुमति मांगी तो भगवान् शिव ने उन्हें मना कर दिया परन्तु सती पीहर जाने के लिए हठ करती रहीं। अपनी बात बार-बार दोहराती रहीं।उनकी इच्छा देखकर भगवान शिव ने पीहर जाने की अनुमति दे दी।
महादेव का द्रितीय अवतार पिप्पलाद | Lord Shiva Piplaad avtar
जब सती अपने पिता के घर गईं, किंतु उनसे किसी ने भी प्रेमपूर्वक वार्तालाप नहीं किया।प्रजापति दक्ष ने उन्हें देखकर कहा,तुम क्या यहाँ मेरा अपमान कराने आई हो ?अपनी बहनों को तो देखो,वे किस प्रकार भांति-भांति के अलंकारों और सुंदर वस्त्रों से सज्जित हैं। तुम्हारे शरीर पर मात्र बाघंबर है।तुम्हारा पति श्मशानवासी और भूतों का नायक है।वह तुम्हें बाघंबर छोड़कर और पहना ही क्या सकता है।’सती मौन रही और सोचने लगीं,उन्होंने यहाँ आकर अच्छा नहीं किया।सती ने यज्ञमंडप की तरफ़ नजर डाली|
महादेव का अपमान सती सह नहीं पाए
यज्ञमंडप में सभी देवताओं के तो भाग देखे,किंतु भगवान शिव का भाग नहीं देखा।यह देखकर सती ने अपने पिता से पूछा ,’पितृश्रेष्ठ! यज्ञ में तो सबके भाग दिखाई पड़ रहे हैं, किंतु कैलाशपति का भाग नहीं है।यह प्रश्न सुनकर दक्ष ने उतर दिया “वह देवताओं की पंक्ति में बैठने योग्य नहीं हैं। उसे कौन भाग देगा।”
महादेव का तीसरा अवतार नंदी – avtar of Lord Shiva
महादेव का ऐसा अपमान सती सह नहीं पाए|वह बोली मुझे धिक्कार है।देवताओ, तुम्हें भी धिक्कार है!तुम भी उन कैलाशपति के लिए इन शब्दों को कैसे सुन रहे हो,जो मंगल के प्रतीक हैं और जो क्षण मात्र में संपूर्ण सृष्टि को नष्ट करने की शक्ति रखते हैं।वे मेरे महादेव हैं। नारी के लिए उसका पति ही स्वर्ग होता है। जो नारी अपने पति के लिए अपमानजनक शब्दों को सुनती है,उसे नरक में जाना पड़ता है। पृथ्वी,आकाश और देवताओं सुनो!मेरे पिता ने मेरे स्वामी का अपमान किया है। मैं अब एक क्षण भी जीवित रहना नहीं चाहती। अपने कथन को समाप्त करती हुई माता सती यज्ञ के कुण्ड में कूद पड़ी।सूर्य की भांति जलने आवे यज्ञ कुंड में माता सती का शरीर जलने लगा |
भगवान् शिव का अवतार वीरभद्र प्रकट हुए
जैसे ही यह जानकारी भगवान शिव को लगी तो वे अपने क्रोध पर नियंत्रण नहीं रख पाए।उन्होंने अपने शिर से एक जटा उखाड़ी और उसे रोषपूर्वक पर्वत पर फेंक दिया|इसी जटा के पूर्वभाग से महाभंयकर वीरभद्र प्रगट हुए. भोलेनाथ के इसी वीरभद्र अवतार ने दक्ष प्रजापति के यज्ञ का विध्वंस कर दिया और दक्ष प्रजापतिका सिर काटकर उसे मृत्युदंड दिया.
शास्त्रों में भी इसका उल्लेख है
क्रुद्ध: सुदष्टष्ठपुट: स धूर्जटिर्जटां तडिद्वह्लिसटोग्ररोचिषम्।
उत्कृत्य रुद्र: सहसोत्थितो हसन् गम्भीरनादो विससर्ज तां भुवि॥
ततोऽतिकायस्तनुवा स्पृशन्दिवं। श्रीमद् भागवत -4/5/1
अर्थात : सती के प्राण त्यागने से दु:खी भगवान शिव ने उग्र रूप धारण कर क्रोध में अपने होंठ चबाते हुए अपनी एक जटा उखाड़ ली, जो बिजली और आग की लपट के समान दीप्त हो रही थी।
वीरभद्र को शिव का प्रथम रुद्रावतार माना जाता है।
सती ने जब दक्ष के यज्ञ में कूदकर देह त्याग दी तब भगवान शिव शंकर ने अपने सिर से एक जटा उखाड़ी और रोषपूर्वक उसे पर्वत के ऊपर पटक दिया उस जटा से वीरभद्र प्रगट हुए।
निष्कर्ष
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