दोस्तों क्या आप शहीद भगत सिंह के बारेमे जानना चाहते हे ? तो आप सही आर्टिकल पढ़ रहे हो । आपसे अनुरोध है की कुछ समय दे कर पुरे लेख को अच्छी तरह से पढ़े ताकि आपको पूरी जानकारी मिल सके।
शहीद भगत सिंह की प्रेरणादायक कहानी – Bhagat Singh Biography in hindi
शहीद भगत सिंह का जन्म 1907, 27 सितंबर को हुवा था | और उनको 1931, 23 मार्च को भगत सिंह, सुखदेव और राज गुरु को फाशी दी गयी थी| भगत सिंह सरदार किसान परिवार से थे | उनके पिता का नाम सरदार किशन
और माता का नाम विद्यावती था | उनके पिता और चाचा दोनों भारत से अग्रेजो के खिलाफ थे | घर में क्रांति का माहौल का उसका असर शहीद भगत सिंह पे लगथा | शहीद भगत सिंह के अंदर बचपन सेहे देशभगति की भावना पनपने लगी थी |
भगत सिंह जीवन परिचय:
पूरा नाम | शहीद भगत सिंह |
जन्म | 27 सितम्बर 1907 |
जन्म स्थान | जरंवाला तहसील, पंजाब |
माता-पिता | विद्यावती, सरदार किशन सिंह सिन्धु |
भाई – बहन | रणवीर, कुलतार, राजिंदर, कुलबीर, जगत, प्रकाश कौर, अमर कौर, शकुंतला कौर |
मृत्यु | 23 मार्च 1931, लाहौर |
1919,13 अप्रैल को अमृतसर से जलियावाल बाग में हुयी घटना ने 12 साल के शहीद भगत सिंह के मन पे काफी गहरा असर किय था|उन्होंने जलियावाल बाग की मिटिको आपने साथ निसानी के तौर पे पूरी जिंदगी रखा था | जलियावाल बाग हटिया कांड ने अग्रेजो को भारत से निकाल नेके इरादे को ओर भी ज्यादा मजबूत कर दिया था |
जब गाँधीजी ने अग्रेजो के खिलाफ 1921 में असयोग आंदोलन किया उस समय भगत सिंह ने अपनी पढ़ई छोर कर आंदोलन में शामिल हुए | लेकिन जब गाँधीजी ने 1922 में चौरी-चौरा में हुयी हिंसा के कारण उनको ये आंदोलन बन पड़ा उसे सुनकर भगत सिंह को बहुत भूरा लग था | और भगत सिंह को अहिंसा में विश्वास नहीं रहा और उनको लगने लगा की सशस्त्र क्रांति ही स्वतंत्रता दिलाने का एक मात्र उपाय हे|
भगत सिंह ने फिरसे अपनी पढ़ई सुरु करने के लिए लाला लाजपत राय द्वारा स्थापित राष्ट्रीय विद्यालय में प्रवेश लिया| और उसके साथ यह विद्यालय एक क्रांतिकारी गतिविथिओ का केंद्र था | वह भगत सिंह को सुखदेव और बाकि कही सरे क्रांतिकारी ओसे मुलाकात हुई |
काकोरी कांड में जब राम प्रसाद बिस्मिल के साथ 4 क्रांतिकारी को फाँसी की सजा और 14 क्रांतिकारी को कारावास की सजा दी गयी तब भगत सिंह ने चंद्रशेखर आजाद के साथ के साथ मिलकर चंद्रशेखर आजाद की हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के साथ जुड़कर उन्होंने एक नयी नाम उसका नाम हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन दिया | वह नई युवनोंको सेवा, त्याग और पीड़ा झेल सके उसके लिए तैयार किया जाता था |
भगत सिंह को जब उनके घर से साड़ी करने के लिए कहा गया तब वो घर से भागकर कानपुर चले गए और वह गणेश शंकर विद्यार्थी नाम के क्रांतिकारी से मिले |जब भगत सिंह को उनकी दादी की बीमारी के बारे में पता चला तब वे वापस घर चले गए लेकिन उन्होंने वह सेबी क्रांतिकारी गतिविथि ओ को जारी रखा भगत सिंह ने दिल्ली में 1928 में क्रांतिकारी की बैठक में भाग लिया |
1928 फरवरी में इंग्लैंड से साइमन कमीशन भारत के दोरेपे आये उनका मुखिया उदेस भारत के लोगों की स्वतंत्र और राजशाही में शामिल होना था |उस समय कोई भारतीय सदस्य नहीं था जिसके कारन उनकी विरुद्ध में कोय नहीं था | लाहौर में साइमन कमीशन के खिलाफ नारेबाज़ी करते हुए लाला लाजपत राय के ऊपर लाठी चार्ज किया जैसे वे काफी घायल होंगे और उनकी मोत होगयी |
लाला लाजपत राय के मोत का बदला लेने के लिए भगत सिंह ने ब्रिटिश अधिकारी स्कॉट को मरने का निर्णय लिया कुकी ब्रिटिश अधिकारी स्कॉट लाला लाजपत राय के मोत का कारण था |भगत सिंह और उनके साथी ब्रिटिश अधिकारी स्कॉट को मार ने के लिए गए लेकिन उन्होंने ब्रिटिश अधिकारी स्कॉट के बदले सहायक अधीक्षक सॉन्डर्स को मार दिया | उसके बाद भगत सिंह और उनके साथी बच ने के लिए लाहौर को छोर ना पड़ा |
भारतीयों को अधिकार और स्वतंत्रता देने के बजाय असंतोष का मूल कारण खोजने करे बदले ब्रिटिश सरकार ने दमनकारी नीतियों का इस्तेमाल किया।भगत सिंह को ये बात अच्छी नहिलगी |सभी चाहते थे की ब्रिटिश सरकार को पता चलना चाहिए की अब सभी हिंदुस्तानी जान चुके हे |और उन्हें दिलो में ऐसी कूट नीतियों के प्रति आक्रोश हे|उसे साबित करने के लिए उन्होंने दिल्ली की केंद्रीय विधानसभा में जहा बैठक होने वाली थी वह उन्होंने बोम फॉर नेकी योजना बनायीं |लेकिन उनका उदेस किसीको मरना नाहीथा बल्कि उनको बताना थाकी अब उनकी दमनकारी नीतियों को अब और संनहीं किया जायेगा |
4 अप्रैल 1929 को दिल्ली के केंद्रीय विधानसभा में भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने किसी को चोट ना लगे वह बोम को फोरा सारी तरफ धुवा धुवा था वो चाहते तो वह से भाग सकते थे लेकिन उन्होंने वह खरे रेकर “इंकलाब जिंदाबाद”, “साइमन गो बैक” और “साम्राज्यवाद मुर्दाबाद” के नारे लगाये| उसके बाद पुलिस पहुंची और दोनों को गिरफ्तार कर के लेगये|उन को पता था की उनको फांसी की सजा होगी फिर भी वो वह पे खड़े रहे |
भगत सिंह की मृत्यु कब हुई थी?
7 अक्टूबर 1930 को भगत सिंह, सुखदेव और राज गुरु को न्यायालय की और से फांसी की सजा सुनाई गयी| यह सुनकर भारत के सभी नेताओं ने ब्रिटिश सरकार पर डाबर डाला और काफी सारि अर्जियाँ भी की लेकिन ब्रिटिश सरकार ने उन अर्जियों को नामंज़ूर किया | 23 मार्च 1931 को शाम को 7 बजकर 33 मिनट को फांसी दी गयी थी|
भगत सिंह आख़िरी समय में लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे जब जेलर ने उनकों फांसी के लिए बुलाया तब उन्होंने जेलर से कहा की “रुक जाओ! पहले, एक क्रांतिकारी दूसरे से मिल तो ले।” उसके बाद किताब को छत की ओर उछली और बोला – “ठीक है अब चलो।”
- फाँसी पर जाते समय वे तीनो क्रान्तिकारी यह पंक्तियाँ गुनगुना रहे थे –
- मेरा रँग दे बसन्ती चोला, मेरा रँग दे.
- मेरा रँग दे बसन्ती चोला. माय रँग दे बसन्ती चोला.
आज भी देश की जनता उन महान क्रान्तिकारी भगत सिंह को याद करती है जिन्होंने अपनी ज़िन्दगी और जवानी भारत माँ के लिए कुर्बान कर दी. ऐसे महान राष्ट्र भक्त को हमारा शत – शत नमन.
भगत सिंह के विचार
प्रेमी, पागल एवम कवि एक ही थाली के चट्टे बट्टे होते हैं अर्थात सामान होते हैं
जिन्दगी तो अपने दम पर ही जी जाती है….
दुसरो के कन्धों पर तो सिर्फ जनाजे उठाये जाते हैं
भगत सिंह के विचार
जो व्यक्ति उन्नति के लिए राह में खड़ा होता हैं उसे परम्परागत चलन की आलोचना एवम विरोध करना होगा साथ ही उसे चुनौति देनी होगी
निष्कर्ष:
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