Janmashtami ki kahani : श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को किया जाता है। कृष्ण जन्माष्टमी को भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में पूरे भारत देश में व्यापक रूप से मनाया जाता है। भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्णपक्ष की अष्टमी बुधवार को रोहिणी नक्षत्र में अर्धरात्रि के समय वृष के चंद्रमा में हुआ था। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान कृष्ण, भगवान विष्णु के आठवें अवतार थे।
श्री कृष्ण जन्म की कहानी का भी गूढ़ अर्थ है। इस कहानी में देवकी शरीर की प्रतीक हैं और वासुदेव जीवन शक्ति अर्थात प्राण के। जब शरीर प्राण धारण करता है, तो आनंद अर्थात श्री कृष्ण का जन्म होता है। लेकिन अहंकार (कंस) आनंद को खत्म करने का प्रयास करता है। यहाँ देवकी का भाई कंस यह दर्शाता है कि शरीर के साथ-साथ अहंकार का भी अस्तित्व होता है।
श्रीकृष्ण जीवन परिचय
निवासस्थान | गोलोक, वृंदावन, द्वारका, गोकुल |
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अस्त्र | सुदर्शन चक्र |
युद्ध | कुरुक्षेत्र |
जीवनसाथी | राधा, रुक्मिणी, सत्यभामा, जांबवती |
माता | देवकी |
पिता | वासुदेव |
पालक माता-पिता | यशोदा और नंदा बाबा |
भाई | बलराम |
बहन | सुभद्रा |
शास्त्र | भागवत पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण, विष्णु पुराण, महाभारत, भगवद् गीता |
त्यौहार | जन्माष्टमी |
श्री कृष्ण को ‘माखन चोर’ क्यों कहा जाता है?
श्री कृष्ण माखनचोर के रूप में भी जाने जाते हैं। दूध पोषण का सार है और दूध का एक परिष्कृत रूप दही है। जब दही का मंथन होता है, तो मक्खन बनता है और ऊपर तैरता है। यह भारी नहीं बल्कि हल्का और पौष्टिक भी होता है। जब हमारी बुद्धि का मंथन होता है, तब यह मक्खन की तरह हो जाती है। तब मन में ज्ञान का उदय होता है, और व्यक्ति अपने स्व में स्थापित हो जाता है।
यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत !
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानम सृज्याहम !!
जब जब धर्म का नाश होगा और अधर्म की उत्पत्ति होगी तब तब मैं इस धरती पर जन्म लूंगा
श्रीमदभगवद गीता के मुताबिक जब जब धरती संकट में आएगी तब तब भगवान इस धरती पर किसी भी रूप में जन्म लेंगे। जब धरती में असुरों का आतंक बढ़ गया। कंस जैसे क्रूर अत्याचारियों का अत्याचार चरम पर आ गया तब श्रीकृष्ण भगवान ने जन्म लिया था।
भगवान् श्रीकृष्ण की कुछ बांटे हमे याद रखनी चाहिए
Janmashtami ki kahani | जन्माष्टमी की कहानी सुनकर करें श्री कृष्ण जी की आरती :
जय श्री कृष्ण हरे प्रभु जय श्री कृष्ण हरे ।
सकल जगत के प्राणी दुःख सन्ताप हरे ।
जय श्री कृष्ण हरे ।
मोर मुकुट सिर सोहे कर मुरली धारी ।
सुर नर मुनि सब मोहे सुन्दर छवि प्यारी ।
जय श्री कृष्ण हरे ।
ऊखल आप वेधा कर यमुला जिन हारी ।
वृन्दावन प्रभु आकर लीला बहुत करी ।
जय श्री कृष्ण कृष्ण हरे ।
अघासुर खेल दिखाकर काली नाग हरी।
अद्भुत खेल दिखाकर काली नाग हरी ।
जय श्री कृष्ण हरे ।
पान किया दाबानल गिरी पूजा कीनी ।
लीला रास रचाकर सुध हर लीनी ।
जय श्री कृष्ण हरे ।
प्रेम सहित नित आरती अर्जुन मैं गाऊँ ।
चरणकमल संग प्रति यह प्रभु वर चाहूँ ।
जय श्री कृष्ण हरे । ।
अगर जिंदगी में आप भी बात-बात पर अपना धैर्य खो देते हैं, श्रीकृष्ण से इसके लिए प्रेरणा लें। भगवान कृष्ण ने शिशुपाल की 100 गलतियां माफ की थी। वो हमेशा जिंदगी में मुस्कुराते रहने की सीख देते हैं। वो बताते हैं कि किसी चीज या लोगों की बातों को सुनकर हमें अपना धैर्य तुरंत नहीं खोना चाहिए।
Janmashtami ki kahani – Ramanand Sagar | श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की कहानी – रामानंद सागर
YouTube Video: Janmashtami Story in Hindi
- निर्माता – रामानन्द सागर / सुभाष सागर / प्रेम सागर
- निर्देशक – रामानन्द सागर / आनंद सागर / मोती सागर
- मुख्य सहायक निर्देशक – योगी योगिंदर
- सहायक निर्देशक – राजेंद्र शुक्ला / सरिधर जेटी / ज्योति सागर
- पटकथा और संवाद – संगीत – रामानन्द सागर
- कैमरा – अविनाश सतोसकर
- संगीत – रविंद्र जैन
- गीत – रविंद्र जैन
- पार्श्व गायक – सुरेश वाडकर / हेमलता / रविंद्र जैन / अरविन्दर सिंह / सुशील
- संपादक – गिरीश दादा / मोरेश्वर / आर॰ मिश्रा / सहदेव
श्रीकृष्ण लीला रामानंद सागर
श्री कृष्ण जी की लीला के बारे में रामानन्द सागर जी बखान करते हैं। सुतजी सभी ऋषि गण को राजा परिक्षित की कहनी सुनाते हैं। जिसमें राजा परीक्षित एक ब जंगल में घूम रहे थे जहां उन्हें कलयुग मिलता है और वह अपने आने की बात को राजा को बताते हैं। कलयुग को राजा परीक्षित अपने राज्य में आने के लिए मान जाते हैं। कलयुग को राजा परिक्षित 5 स्थानों में रहने की आज्ञा दे देते हैं जिसमें से एक स्वर्ण भी था।
कलयुग राजा परिक्षित के सोने के मुकुट में जा बैठता है। उस दिन जब राजा परिक्षित शिकार के लिए भटक रहे तो ऋषि शमिक के आश्रम में जा पहुँचते हैं जब वो वह पहुँचते हैं तो ऋषि साधना में लीन थे, राजा उनसे पानी माँगते हैं परंतु समाधि में लीन होने के कारण वो कोई उत्तर नहीं देते। तभी कलयुग राजा परिक्षित को मुनि को उनकी आज्ञा ना मानने पर मृत्यु दंड देने को उकसा देता है परंतु राजा अपने आप को रोक लेता है लेकिन पास ही एक मरे हुए साँप को ऋषि के गले में दल देता है और वह से चला जाता है।
राजा परीक्षित को श्राप
ऋषि शमिक के पुत्र शृंगी को जब ये पता चलता है राजा ने उसके पिता का तिरस्कार किया है तो वह राजा को श्राप दे देता है जिसमें उसकी मृत्यु 7 दिन बाद तक्षक सर्प के काटने से हो जाएगी। ऋषि शमिक अपने पुत्र शृंगी को समझाते हैं की उसने श्राप देकर बहुत ग़लत किया।
जब राजा परिक्षित अपने महल वापस आ जाता है और जैसे ही वह अपने सर से मुकुट उतारते हैं तो उनके दिमाग़ से कलयुग द्वारा कराए गए अपराध से ग्लानि होती है। ऋषि शमिक राजा से मिलने के लिए उनके पीछे पीछे उनके महल पहुँच जाते हैं, राजा परिक्षित ऋषि शमिक का आदर सत्कार करते हैं। ऋषि शमिक उनकी सराहना करते हैं और उन्हें अपने पुत्र शृंगी के द्वारा दिए गए श्राप का बताते हैं।
ऋषि शमिक राजा को मोक्ष की प्राप्ति के लिए अपने गुरुओं से मिलने के लिए कहते हैं। राजा शमिक अपने गुरु के पास चले जाते हैं और उनसे अपने श्राप की बात बताते हैं और उनसे अपने लिए मुक्ति पाने के लिय रास्ता पूछते हैं। तो उनके गुरु उन्हें श्रीमद् भागवत का कथन करने के लिए कहते हैं। और उन्हें भगवान शुकदेव के पास भेजते हैं ताकि उनसे श्रीमद् भागवत सुना सके। भगवान शुकदेव के पास जाकर राजा पारिक्षित उनसे मुक्ति का रस्ते पूछते हैं तो भगवान शुकदेव उन्हें श्रीमद् भागवत कथा सुनते हैं
श्रीमद् भागवत कथा : Janmashtami Ki Kahani
जिसमें श्री कृष्ण के जीवन लीला का बखान करते हैं। वो बताते हैं की मथुरा का राजकुमार कंस सभी ऋषि मुनियो और प्रजवासियो को दंडित करता था और खुद को भगवान मानता था। कंस आदि असुरों से मुक्ति के लिए सभी देवता ब्रह्मा जी के पास जाते हैं और मदद माँगते हैं। तो ब्रह्मा जी उन्हें बताते है की श्री हरि के अवतार लेने का वक्त आ चुका है। श्री हरि अवतार भी कंस की बहन के गर्भ से ही लेने वाले थे। दूसरी और कंस अपनी चचेरी बहन देवकी का विवाह वासुदेव के साथ करवा रहा था।
विवाह के पश्चात कंस देवकी और वासुदेव का सारथी बन उन्हें उनके राज्य में छोड़ने के लिये निकलता है। तभी रास्ते में आकाशवाणी होती है की कंस का मृत्यु देवकी के आठवे पुत्र द्वारा ही होगी। यह सुन कंस क्रोधित होकर देवकी को हाई मारने की कोशिश करता है ताकि ना देवकी रहेगी और ना ही उसका पुत्र जन्म लेगा।
कंस का अत्याचार :
जैसे ही कंस देवकी को मारने के लिए आगे बढ़ता है तो वासुदेव उसे रोक देता है। वासुदेव प्रतिज्ञा लेता है की वह अपने सभी पुत्रों को अपने आप कंस को सौंप देगा। कंस उन्हें अपने ही पास रख लेता है और उनको महल में ही क़ैद कर देता है। महाराज उग्र्सैन देवकी वासुदेव को मुक्त करवा देते हैं।
कंस अपने दो मित्र बाणासुर और भुमासूर से मिलने की नीति बनाता है। कंस और उसके मित्र महाराजा उग्र्सैन को मारने की योजना बनता है। अक्रूर को कंस पर शक होता है और वो कंस के किसी षड्यंत्र से सचेत रहने की तैयारी करता है। देवकी पहली बार गर्भ धारण करने की खबर से वासुदेव के भाई भगवान का प्रशाद भेजते हैं। कंस धीरे धीरे अपने मित्र राजाओं की सेना को एकत्रित कर रहा होता है। देवकी के अपने पहले पुत्र को जन्म देती हैं। वासुदेव अपने पहले पुत्र को लेकर कंस के पास चला जाता है।
कंस पूरी मथुरा नगरी पर क़ब्ज़ा
देवकी के पहले पुत्र को देख कंस उसे वापस भेज देता है क्योंकि उसे ख़तरा सिर्फ़ देवकी के आठवें पुत्र से है। लेकिन कंस का सलाहकार चाणुर उसे देवकी के सभी पुत्रों को मारने के लिए कहता है। कंस देवकी वासुदेव के पास आकार उनके पुत्र को छिन लेता है और उनके पुत्र को मार देता है। फिर वह उन्हें कारगर में बंद कर देता है। राजा उग्र्सैन को इसकी खबर मिलती है तो वो कंस को अपने पास बुलाकर क्रोधित होते हैं और कंस को बंदी बनाने के आदेश देते हैं।
कंस के मित्र की सेना वह पहुँच जाती है और राजा उग्र्सैन के सभी वफ़ादार सिपाहियों को मार देते हैं। कंस राजा उग्र्सैन को कारगर में डाल देता है। कंस की सेना राज्य में सभी जगह फैल जाती है और अपने क़ब्ज़े में ले लेता है। कंस पूरी मथुरा नगरी पर क़ब्ज़ा कर लेता है। राजा शूरसेन अक्रूर को भागने के लिए कहते हैं।अक्रूर के साथी मिल कर मगध से अपनी सारे साथियों को सुरक्षित निकाल लेते हैं और वासुदेव की दूसरी पत्नी रोहिनी को गोकुल में नंदराय जी के पास भेज देते हैं। वासुदेव की दूसरी पत्नी रोहिनी अपने सिपाहियों के साथ वेश बदल नगर से निकल जाती हैं।
निष्कर्ष
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