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Homeटेक्नोलॉजीसूर्य ग्रहण - चंद ग्रहण के जुडी धार्मिक मान्यता और वैज्ञानिक तथ्य...

सूर्य ग्रहण – चंद ग्रहण के जुडी धार्मिक मान्यता और वैज्ञानिक तथ्य | Surya Grahan

सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण के जुडी धार्मिक मान्यता और वैज्ञानिक तथ्य – The truth of Surya Grahan Chandra Grahan

 ग्रहण एक खगोलीय अवस्था है जिसमें कोई खगोलिय पिंड जैसे ग्रह या उपग्रह किसी प्रकाश के स्रोत जैसे सूर्य और दूसरे खगोलिक पिंड जैसे पृथ्वी के बीच आ जाता है जिस के कारण प्रकाश कुछ समय के छिप जाता है।पृथ्वी के साथ मुख्य रूप से सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण होते है |

सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण होने का वैज्ञानिक तथ्य

सूर्य ग्रहण:

जब पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती हे तब सूर्य और पृथ्वी के बिच में चन्द्र आ जाता है तो चन्द्र के पीछे सूर्य का प्रकाश कुछ समय के लिए छिप जाता है |जिससे पृथ्वी पर छाया फेल जाता हे इस घटना को सूर्य ग्रहण कहा जाता है |

चन्द्र ग्रहण:

 चन्द्र पृथ्वी का उपग्रह होने के कारण पृथ्वी की परिक्रमा करता हे और पृथ्वी सूर्य की | जब चन्द्र और पृथ्वी परिक्रमण करते हुए सूर्य की सीधी रेखा में आते हे तब  पृथ्वी की छाया चन्द्र पर पड़ती है | इस घटना को चन्द्र  ग्रहण कहा जाता है|

सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण होनेकी धार्मिक मान्यता :

पौराणिक कथा के अनुशार देवता और दानवो के बिच हुए समुंद्र मंथन के दरमियान जब समुंद्र मेसे अमृत कलश निकला तो देवता और दानवो में अमृत पाने के लिए विवाद हो गया | तब भगवान विष्णु ने मोहनी रूप धारण किया | मिहिनी ने अमृत पान करवाने देवता और दानवो को अलग -अलग कतार में बिठाया |

भगवान विष्णु रूप धारी मोहिनी ने देवता और दानवो को जब अमृत पान करवाना शुरू किया तो देवताओ को अमृत और दानवोको सल से मदिरा पान करवाने लगे |स्वर्भानु नामक अशूर को इस बात की शंका होने पर अपना रूप बदल कर देवताओ की कतार में बेठ गए | चन्द्र देव और सूर्य देव ने अशूर स्वर्भानु को ऐसा करते देख लिया | चन्द्र देव और सूर्य देव ने यह जानकारी भगवान विष्णु को दे दी | परन्तु इस दौरान स्वर्भानु ने अमृत पान कर लिया था | भगवान विष्णु को यह जानकारी मिलने पर उन्हें बहुत ग़ुस्सा आया और भगवान विष्णु ने  स्वर्भानु पर सुदर्शन चक्र चला दिया | सुदर्शन चक्र से  स्वर्भानु का शिर धड़ से अलग हो गया परन्तु अमृत के कारण उसकी मृत्यु नहीं हुए और स्वर्भानु के शरीर के दोनों भाग जीवित रहे |  स्वर्भानु के शिर वाले भाग को राहु और धड़ वाले भाग को केतु कहलाया गया |

स्वर्भानु की जानकारी चन्द्र देव और सूर्य देव्  ने भगवान विष्णु को दी थी | जिस कारण स्वर्भानु चन्द्र देव और सूर्य देव को अपना शत्रु मानने लगा और क्रोध में आकर उन्हें श्राप दे दिया | जिस कारण चन्द्र देव और सूर्य देव को ग्रहण लगता है |